Madhu varma

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लेखनी कविता - आदमी का चेहरा - कुंवर नारायण

आदमी का चेहरा / कुंवर नारायण


“कुली !” पुकारते ही

कोई मेरे अंदर चौंका ।

एक आदमी आकर खड़ा हो गया मेरे पास

सामान सिर पर लादे

मेरे स्वाभिमान से दस क़दम आगे

बढ़ने लगा वह

जो कितनी ही यात्राओं में

ढ़ो चुका था मेरा सामान

मैंने उसके चेहरे से उसे

कभी नहीं पहचाना

केवल उस नंबर से जाना

जो उसकी लाल कमीज़ पर टँका होता

आज जब अपना सामान ख़ुद उठाया

एक आदमी का चेहरा याद आया

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1 Comments

madhura

24-Jan-2023 03:17 PM

nice

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